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नेशन बुलेटिन धार। श्रीमती जमुना देवी पुण्यतिथि, डेढ़ दशक बाद आज भी ‘बुआ जी’ की जगह रिक्त।

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● उमंग सिंघार-

आज कांग्रेस की आदिवासी नेत्री जमुना देवी जी यानी हमारी ‘बुआ जी’ को हमसे बिछड़े 15 साल हो गए। इन डेढ़ दशक के अंतराल में कांग्रेस और आदिवासी समाज की स्थितियों में बहुत कुछ बदलाव आया। लेकिन, हर बदलाव के दौर में बुआ जी की कमी हमेशा खलती रही। उनके बगैर आदिवासियों ने राजनीतिक और सामाजिक रूप से बहुत कुछ खोया, जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती। क्योंकि, बुआ जी का नेतृत्व आदिवासी समाज के लिए ऐसी ताकत थी, जिनक़ी जगह कोई और नहीं ले सका। वे बहुमुखी, निडर और समाज के प्रति समर्पित व्यक्तित्व की धनी थी। उनका लगभग पूरा जीवन ही आदिवासियों और वंचित वर्ग के अधिकारों के लिए समर्पित रहा। पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा और उसे जीवन भर अपना आदर्श बनाकर रखा।
जमुना देवी जी का व्यक्तित्व आदिवासी नेतृत्व, सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण का जीवंत प्रतीक था। उन्होंने अपने जीवन में अनेक बाधाओं के बावजूद अपने आदर्श और लोक सेवा के प्रति समर्पण में कभी कोई कमी नहीं आने दी। वे अपने बेबाक अंदाज, प्रखर नेतृत्व और वंचितों के अधिकारों की आवाज़ के लिए मध्य प्रदेश के साथ देशभर में लोकप्रिय रहीं। प्रदेश के लोग उन्हें स्नेह से ‘बुआ जी’ कहते थे। ये उनके प्रति स्नेह का प्रतीक था। बुआ जी व्यक्तित्व निडर, ईमानदार और दृढ़ संकल्प वाली नेता का था, जिन्होंने सामाजिक व राजनीतिक संघर्षों में हार नहीं मानी।
आदिवासी और पिछड़े वर्ग के अधिकारों के लिए उन्होंने लगातार संघर्ष किया और जनकल्याण के कई अहम पदों पर काम किया। उनका नेतृत्व वंचितों की आवाज़ के रूप में प्रखर था और वे अपने लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हटीं। उन्होंने महिला सशक्तिकरण और आदिवासी समाज के स्थायी विकास के लिए उल्लेखनीय प्रयास किए। आज आदिवासी समाज को जो अधिकार प्राप्त हैं, उसमें बुआ जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। याद किया जाए तो उनका पूरा जीवन आदिवासी उत्थान के संघर्षों से भरा रहा। उन्होंने राजनीति में सक्रिय रहकर समाज को बेहतर बनाने का हरसंभव प्रयास किया। उनके नेतृत्व में जनजाति, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के कल्याण के लिए कई अहम काम हुए। आदिवासियों के अधिकारों के लिए उनकी भूमिका हमेशा ही महत्वपूर्ण रही।
बहुमुखी और कुशल नेतृत्व वाली बुआ जी ने विधायक, सांसद, मंत्री, उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जैसे पदों पर कार्य करते हुए अपनी सफल नेतृत्व क्षमता और समर्पण दिखाया। वे आदिवासी समाज की सशक्त संरक्षक रही और पूरे राजनीतिक जीवन में उन्होंने जनजातीय वर्ग के कल्याण का कोई मौका नहीं छोड़ा और हमेशा अथक प्रयास किए। उनकी हिम्मत और जुझारूपन ने उन्हें कठिन समय में भी सही राह दिखाई और अपने राजनीतिक और सामाजिक कार्यों को जारी रखा। प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा उनसे ही मिली। उन्होंने महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने और समाज में उनकी भागीदारी बढ़ाने की दिशा में विशेष काम किया।
अपनी इन विशेषताओं के जरिए जमुना देवी का व्यक्तित्व न केवल राजनीतिक क्षेत्र में बल्कि सामाजिक न्याय और आदिवासी उत्थान के क्षेत्र में भी एक प्रेरणादायक आदर्श था। बुआ जी आदिवासियों की सिर्फ नेत्री ही नहीं, उनकी सत्य और निर्भीक आवाज़ भी थी, जिन्होंने अपने जीवन को जनजातीय समाज के उत्थान और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए समर्पित किया। राजनीति में उनकी खास पहचान उनके निर्भीक और बेबाक अंदाज की वजह से थी, वे हमेशा जनजातीय और कमजोर वर्गों के पक्ष में मुखर रहीं।
उनके नेतृत्व में आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए जनजातीय सुविधाओं, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कई कार्य हुए। वे आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए, जनजातीय सुविधाएं बढ़ाने और शिक्षा के कार्यों के विस्तार में लगी रहीं। आज 15 साल बाद भी हमारा आदिवासी समाज उनके किए कार्यों का सुफल प्राप्त कर रहा है। उन्होंने 58 साल से अधिक समय तक समाज सेवा और कांग्रेस की राजनीति में योगदान दिया। 2010 में उनका निधन हो गया, पर उनके कार्य और आदर्श आज भी आदिवासियों के लिए प्रेरणा हैं। उनके भतीजे के रूप में उनकी कमी को महसूस करना मेरी व्यक्तिगत क्षति है। लेकिन, उनकी कमी को आदिवासी समुदाय भी उसी तरह महसूस करता है। क्योंकि, जमुना देवी जी जैसे चंद लोग होते हैं, जो सिर्फ समाज के उत्थान के लिए जन्म लेते हैं।

(लेखक मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं)

 

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