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धार नगरी में भी आयम्बिल तप किया गया, लगभग 100 साधर्मिक स्वजनों ने यह व्रत किया।

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मूक अबोल प्राणियों की आत्मशांति हेतु श्वेताम्बर जैन समाज द्वारा किया गया आयम्बिल व्रत।
एक समुदाय विशेष द्वारा बकरा ईद के दिन जब असंख्य निर्दोष प्रणियों की बलि दी जाती है तो अहिंसाप्रेमी जैन समाज का रोम-रोम हिल जाता है। उन निर्दोष प्राणियों की आत्मशांति और उनके प्रति करुणा भावना से जैन समाज में सामूहिक आयम्बिल व्रत किया जाता है।
इसी करुणा की भावना के साथ ही जीवदया प्रति पालक परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री नवरत्नसागर सुरीश्वरजी म.सा. की पावन प्रेरणा से धारानगरी में भी आयम्बिल तप किया गया, लगभग 100 साधर्मिक स्वजनों ने यह व्रत किया, उक्त जानकारी देते हुए नयन जैन ने बताया कि आयम्बिल तप में बिना घी, तेल, दूध, दही, बिना मिर्च मसाले से बने भोजन एक समय एक ही स्थान पर बैठकर किया जाता है।
सर्व प्रथम पूज्य आचार्य भगवंत श्री नवरत्नसागर सुरीश्वरजी म.सा. की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन श्रीसंघ के वरिष्ठ श्री प्रसन्नचंदजी वागरेचा, श्री प्रजोतकुमार जैन, इंदौर से पधारे श्री कुन्दनलालजी जैन, श्री अभयजी मेहता द्वारा किया गया तत्पश्चात मूक अबोल प्राणियों की आत्मशांति के लिए 27-27 नवकार का पाठ किया गया। आयम्बिल के पच्चक्खान श्री आदित्य धोका द्वारा दिलाए गए। भक्तांबर महातीर्थ पर विराजित वाणी के जादूगर परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री जितरत्नसागर जी म.सा. ने भी साधर्मिक स्वजनों को आयम्बिल तप हेतु प्रेरित किया, इस दिन सफेद खाने की वस्तु का त्याग, 27-27 नवकार का स्मरण करने के भाव रखने को कहा।
आज के संपूर्ण आयोजन की व्यवस्था कल्याण मित्र मंडल ने संभाली।
आयम्बिल तप के लाभार्थी श्री शांतिलालजी गुप्ता परिवार रहे।

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